एक था समय जब प्रेम में संसार डूबा रहता था / कलयुग से पहले आया युग द्वापर उसे जग कहता था //
दूध की नदियां बही माखन बटा गलिहार में / प्रेम और आनंद था सब लोगों के व्यवहार में //
आनंद को लग गई नजर जब राक्षस पैदा हुए/ दिखने लगे आकाश में अंधियारों के काले धुएं //
जब जीव जंतु देवता शोषण से पीड़ित हो गए / वैकुंठ पहुंचे मिलके सब और जाके दंडवत हो गए //
देखा हरि ने हाल जब आए हुए बेचारो का / करने वो आए पृथ्वी पर संघार अत्याचारों का//
अष्टमी को जन्मे में है इस जग के पालनहार जी/ निश्चित हुआ इस धरती पर कंस का संघार जी//
मारे गए सब राक्षस मेरे प्रभु के हाथों से/ कैसे बताऊं उनकी लीला अपनी छोटी बातों से//
बस इतना कहना चाहता हूं वह जगत के आधार हैं/ मैं उनकी गाथा लिखता हूं यह उनका ही आभार है
- कवि वरुण वर्मा, खेकड़ा बागपत