सुरेंद्र मलनिया
काफी वक्त हुआ एक कार्यक्रम में, भारतीय संस्कृति पर अपने विचारों को व्यक्त करते हुए मैंने एक जुमला कहा था, "मोहब्बत की इसी धरती को हिंदुस्तान कहते हैं ।" मेरे इन जुमलों की सदाकत इस पुर आशूब दौर में कई बार सही साबित हुई जब मुल्क के कई हिस्सों में फिरकावाराना फिज़ा से माहौल खराब हो रहा था, तो ऐन उसी वक्त तमाम मकामत से, हिंदू मुस्लिम इत्तिहाद को मजबूत करने वाली ख़बरें, मौसूल हो रही थीं।
पिछले एक महीने में , प्रयागराज की एक घटना में अपने फायदे के लिए कुछ अनासिर माहौल को खराब करने की पूरी जुगत में लगे हुए थे। चुनावी नतीजे वाले दिन चुनाव के नतीजों के साथ साथ सांप्रदायिक सद्भाव का भी नतीजा निकला, जो बहुत चौकाने वाला ,साथ साथ दिल को छूने वाला भी था।
उत्तर प्रदेश में धर्म नगरी अयोध्या में सुलतान अंसारी ने नगर निकाय के चुनावों में, अयोध्या नगर निगम के पार्षद पद के लिए पहली बार चुनाव में किस्मत आजमायी। जब चुनाव का नतीजा निकला तो ज्ञात हुआ कि उन्होंने राम जन्मभूमि के पास के हिंदू बहुल वार्ड में, एक अन्य निर्दलीय उम्मीदवार नागेंद्र मांझी को 442 मतों के अंतर से हराया। वोट प्रतिशत के हिसाब से इस वार्ड में हिंदू समुदाय के 3844 मतदाताओं के मुकाबले सिर्फ़ 440 मुस्लिम वोटर हैं। यहां 10 उम्मीदवार मैदान में थे. कुल पड़े 2388 मतों में अंसारी को 996 मत मिले जो करीब 42 फीसद है।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक सुल्तान अंसारी ने जीत के बाद कहा, "यह अयोध्या में हिंदू-मुस्लिम भाईचारे और दोनों समुदायों के शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का सबसे अच्छा उदाहरण है। हमारे हिंदू भाइयों से कोई पक्षपात नहीं था और साथ ही उन्होंने मुझे किसी अन्य धर्म के व्यक्ति के रूप में नहीं माना। उन्होंने मेरा समर्थन किया और मेरी जीत सुनिश्चित की।"
वार्ड के स्थानीय निवासी अनूप कुमार ने कहा, 'अयोध्या को बाहर से देखने वाले लोगों को लगता है कि अयोध्या में कोई पार्षद, मुस्लिम कैसे हो सकता है, लेकिन अब वे देख सकते हैं कि मुस्लिम न केवल अयोध्या में रहते हैं बल्कि चुनाव भी जीत सकते हैं। अयोध्या के एक व्यवसायी सौरभ सिंह ने कहा, "अयोध्या राम मंदिर के लिए दुनिया भर में जाना जाता है, लेकिन यह धार्मिक शहर मुसलमानों के लिए उतना ही पवित्र है जितना हिंदुओं के लिए। यहां आपको बहुत सारी मस्जिदें मिलेंगी और मुस्लिम सूफियों के कई सदियों पुराने मकबरे भी हैं।
यह चुनावी नतीजा महज़ किसी एक चुनाव से संबंधित नहीं है, बल्कि इससे सीधे सीधे यह संदेश मिलता है, कि उच्च स्तर पर नफरतों की चाहे जितनी इबारत लिखी जा रही हो किंतु जमीनी स्तर पर आज भी हिंदू मुस्लिम एकता अपनी पुरानी रिवायत के साथ उरुज पर है और दिल को सुकून देने वाली यह ख़बर हर उस शख्स के लिए आबे हयात है, जो हिंदू मुस्लिम इत्तिहाद में लगा हुआ है।